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संदेश

जून, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हम सरकार!

टिकटोक पर बैन है! व्हाट्सएप से चैन है? पेटीएम फ़िर कैसा है? पीएम केयर में पैसा है? हाथ धोए पीछे पड़े खासे चिकने घड़े, खोखले भाषण सब, क्या कीजिएगा अब? मुफ़्त में राशन देंगे,                                                                                                                  योगा के आसन देंगे, झुठ आश्वासन देंगे, सवाल न होने देंगे! देश की सरकार है बात ये बेकार है, इंतज़ार करते मदद का, लाखों लाचार हैं! बात बढ-चढ कर बोलना, बीमारी मज़हब से तोल ना नफ़रत को भक्ति बोलना सत्ता के खेल हैं! सरपरस्त लकीर के फ़क़ीर हैं, कहाँ किसी के ज़मीर हैं, खून चूस मज़लूम का कामयाब सब अमीर हैं! ये कैसे हालात हैं,              ...

त्रिगुण

अनेकता में एकता है?  कौन इतनी फेंकता है?  ...नाम बताओ तो सब सरनेम पूछते हैं! सवर्ण कहाँ संविधान है?  लाखों पांव के छाले पूछते हैं? आप बूझते हैं? भारतीय  साथ दीजिए,  प्यार कीजिए, इज़हार कीजिए!  कहिए क्या सवाल हैं? भलेमानुस घर छोड़ कर आए हैं,  खाली हाथ घर वापस  ये देश के पराए हैं!  मजदूर  बढने की उमर है, पर किधर जाएं?  खाने, खेलने, सोने, बच्चे मालिक ने निकाल दिआ  सरकार ने टाल दिआ,  पुलिस की लाठी, गाली  ताली कोई परेशानी नहीं,  टीवी भगवान है,  बीबी पकवान है!  भक्त मर्द कितने हमदर्द हैं,  कितने साथ आए हैं,  कितने छुट गए, ओझल!

नैतिकता के बाज़ार!

इंसान उद्दण्ड हैं, झूठा सब घमंड है, दुनिया पर वर्चस्व का, नैतिकता, सभ्यता, घटिया मज़ाक हैं, बाज़ार का राज है, और सब बिक रहे हैं, मुंहमांगी कीमत मिले तो आप विजेता हैं, सही कीमत, आंखों पर पर्दा है, आप फिर भी सामान हैं! दर्द न हो  इसलिए मर्द हैं? तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी, एक्सप्रेस हाइवे,  चमकीले साइनबोर्ड, गगनचुंबी इमारतें,  क्या दिखाते हैं,  लॉकडाउन में  क्या छुपाते हैं,  हैरतअंगेज बात,  लाखों सड़क पर  तब कहाँ जाते हैं? चलते नज़र आते हैं,  जब शहर चलता है! सब कुछ ख़त्म नहीं है, कितनों ने हाथ बढ़ाए हैं, कंधे मिलाए हैं, मजबूरी के दर्द, दर्द की मजबूरी आमने सामने हुए साथ आए हैं, हमदिली है, शुक्र है, सब का, गुज़ारिश एक, सवाल एक साथ रखिए, कल हमें ये सब, कहाँ नज़र आएंगे?

ये कैसे रिश्ते?

रि श्ते 'जरूर' होते हैं,  क्यों पर मजबूर होते हैं?  जितने नज़दीक हों,क्यों,  उतने मगरूर होते हैं?  रिश्ता मतलब साथ है  इज़्ज़त है, विश्वास है  फ़िर क्या इतना उकसाता है?  क्यों कोई हाथ उठाता है?  अब क्या रिश्ता रह जाता है? क्या सिखा रहे हैं रिश्ते,  समाज धर्म, व्यवस्था  "गर्व करो" जो जैसा जहां  सवाल की जगह,  कहां?  बड़ो की मानो  वो भी नतमस्तक होके परंपरा जानो, मानो  सीता पर शक  द्रौपदी पर बाज़ी,  काट दो नाक कान  अगर नहीं राज़ी  लगा दो इल्ज़ाम  "शूप्रणखा" वो कौन सी दुनिया होगी,  सब की जिसमें जगह होगी?  साथ ही साथी की वज़ह होगी  मोहब्बत इज़्जत से नापी जाएगी  ताकत सरताज़ नहीं होगी,  खुद को बनाने के लिए  दुसरे को तोड़ना नहीं होगा,  दुनिया के नाप से कोई  कम न होगा,  आज़ादी और क्या है?

पैरों तले ज़मीन!

ताक़त नशा है,  नशा लत होता है,  लत मजबूरी बनती है,  सच से,  ईमान से दूरी बनती है,  अपनी सोच,  जरूरत बनती है,  बस फिर क्या,  साम दाम दंड भेद,  फिर क्या खेद? सब शरीफ़ हैं,  कहीं न कहीं,  दायरे बस अलग अलग,  कोई दुनिया का है,  कोई देश का,  कोई धर्म का, जात का,  कोई मर्द बात का  कोई जमीन का,  कोई कुदरत-ब्रम्हांड का!  आप कितनों के शरीफ हैं? सब की लड़ाई है,  किस से?  किस वजह से?  अपने लिए, अपनों के लिए  खोए सपनों के लिए?  अपनी हदों से लड़ाई है  या  सरहद गंवाई है?  यकीन से जंग है?  या बंद आँख देशभक्त है?  उनका सोचें,  जो भूख से लड़ते हैं?

रोज़ होते कम!

कितने टूटे हैं हम, कितनी दरारें हैं, रिस रहे हैं  हज़ार जगहों से, लाख वजहों से, कितने कम पड़ते हैं, अपना कहकर, अपनों से लड़ते हैं, छीन लेने को,  उनका यक़ीन, उनका प्यार ज़ख्मों का कारोबार, हिंसा का सिक्का, इतना डर? कैसे इतने हम खर्च हो जाते हैं? खुद को भी बचा नहीं पाते हैं? दुनिया की बंदर बांट में, फिट होने को, बहाना! खुद को तराशते हैं।  सच कुछ और! ख़ुद को ही काटते, छांटते, नापते, हर मोड़ कुछ और कम हो जाते हैं, और फिर  ख़ुद को ही ढूंढते हैं, ज़हन में दरबदर घूमते हैं, न ख़त्म होने वाली तलाश, हमारी लाश! कितने हम बिखरे पड़े हैं, टुकड़ों में,  हर जगह, घर में, दुनिया में, अकेले में, काम पर, दोस्तों के साथ, हर जगह,  अधूरे बड़े हैं, हर लम्हा पूरा होने, खर्च होते हैं, चमक चुनते दुनिया कि, अपने अंधेरों को शर्माते हैं, अपने सामने, खुल कर कब आते हैं? नाम कमाने को अपना, ख़र्च हुए जाते हैं, बड़े सस्ते  खुद को निपटाते हैं! भीड़ में एक नाम? जय श्री!!!

काम की बातें

सब कुछ साथ है, जो गुज़र गई, वो याद है जो चाहिए, वो ख्वाब है , जो कहीं नहीं आपबीती है, जो सुन न सके, एक आह है, एक चाह है, एक राह है, हमेशा आपके साथ जब भी आप, चलना चाहें, कुछ बदलना चाहें! सब खूबसूरत है, मनभाए, लुभाए ललचाए, भरमाए, दिलचाहे, साथ सब का अकेलापन, तमाम बातें, अनकही, खामोशी, शोर मोहब्बत के, और अब ये दौर, नफ़रत भी मुस्कराती है, कितनों के दिल लुभाती है! अफ़सोस! चलिए कोई और बात कीजिए, कुछ हट कर, परंपराओं से, दकियानूसी विधाओं से, सट कर रहना, बीमारी है, देश को, समाज को, हम-आप को, नक़ाब पहचानने होंगे, धर्म-जात के, दूर से बात के, घर बैठे काम, आराम है, घर बैठे लाखों भुख को कुर्बान हैं!

बेकार सरकार

(नागरिकता कानून, दिल्ली चुनाव और दंगे) नफ़रत के व्यवहार, अब सरकारी हथियार हैं, गद्दी पर बैठ मज़े लूटें, अब ऐसे जिम्मेदार हैं! (लॉकडाउन और मजदूूूर, मज़लूूूम) परवा नहीं मज़लूम की, कैसे ये हमदर्द हैं? मुँह फेर कर बैठे है, जो 56 इंच के मर्द हैं! जो सामने है वो झूठ है, सच! बस मन की बात है! लूट गई दुनिया लाखों की, ख़बर है, 'सब चंगा सी'!! (ऊपर से ताली, थाली, दिया) दिखावा है, भुलावा है, जो सरकारी दावा है, ताकत का नशा है और चौंधियाता तमाशा है! सरकार सर्वेसर्वा है, सर्वत्र, सरसवार, जिम्मेदारी की बात करी तो, छूमंतर, उड़न छू, ओझल! हज़ारों जंग हैं और लाखों लड़ रहे हैं,  सरकारी रवैये के ज़ख़्म से मर रहे हैं! सब ठीक है, कुछ भी गड़बड़ नहीं, बॉर्डर पर कबड्डी कबड्डी खेल रहे हैं? अपनी टीम के 20 गंवाए? ये किसकी तरफ से खेल रहे हैं? चश्मा बदला है या नीयत बदल गयी है, या हमेशा की तरह जुबान फिसल गई है? हर तरफ पहरे हैं, क्या राज ऐसे गहरे हैं? गुनाह छुपाने वो तानाशाह हुए जाते हैं!

आवाज़ें!

चलिए सबसे प्यार करें नफ़रत से इंकार करें पूंजीवाद के बाजारों ने नाप तौल सब इंसानों को कम ज्यादा में बांटा है बड़ी चमक इन बाजारों ने "है", "नहीं है" में छांटा है! जहन में कब्ज़ा करती इस बदनियती को बर्बाद करें चलो! फिर प्यार करें! करने को हैं लाखों काम, हज़ार बातें,  सच तलाशना,  सवाल पूछना,  आवाज़ उठाना,  उनके लिए, जिनको खामोश किया है,  समाज ने, संस्कृति ने,  विकास ने, सरहदों ने,  जो जमीन पर है  ज़हन में भी! आईना हैं हम, दुनिया का, और सब अच्छे-बुरे का, जो नज़र आता है दूसरों में, गुण, दोष, और हर एक शख्स हमारा आईना है, हमारे किए का, और हमारी आवाज़ खामोशी है, किसी की! कहिए क्या कहना है, और गौर से ख़ुद को सुन लेना! और खेल है सब,  जो खेल रहे हैं,  अंजाने होकर,  कम ज्यादा होते,  ख़ुद में ही, खुद को,  ढूंढते, खोते,  जो कम करता है,  उसी को ढूंढते हैं,  जो ज्यादा है,  उसे ही बचाते हैं?  अपने ही डर से,  कैसे ये नाते हैं? फ़िर भी, यही दुनिया है, यहीं रोज़ हमारे हाथ गुजरती, पूछती हमसे क्या तुम्हारे उसूल ...

देसधरम ज़ीरो करम!

देश क्या है, धरम क्या है? और आपका करम क्या है? भरम एकता का, शोर अनेकता का? जो अलग है, वो ग़लत क्यों है? देश क्या है? सरकार? निकम्मी, बेकार? दुष्प्रचार? छाँटती, बाँटती, तोड़ती मोड़ती, सच को, झूठ को प्रधान है, नफ़रत को सम्मान है? यही गीता का ज्ञान है! कर्म करो, धर्म की चिंता मत करो!! तो सच कैसे पहचानें? क्या मानें, क्या जानें? वाइरल हुआ वो सच? जो उकसाता है? बहकाता है? घर से बाहर आ पहलू, जुनैद, रिज़वान की मौत बन जाता है? कानून आपके साथ भी, और आपके हाथ भी! नफ़रत नशा है और  आपकी आदत! वक्त ने करवट पलटी है, चाल बदली है, आपका क्या हाल है, क्या नया ख़्याल है? तरक्की, विकास, सभ्यता, जिसपर हमको नाज़ है, क्यों वो घुटने मुड़ी है? मुँह बाए खड़ी है! बात बहुत बड़ी है? आपको क्या पड़ी है? चीख़ने वाले हर जगह, सड़क पर, घर में, टीवी पर सच का जोर नहीं शोर का सच है तोल मोल कर बोलने वाले गुनहगार हैं, तानाशाह को मन की बात भूत सवार है! और आपको क्या गवार है? 

"जंग?"

जंग में आसरा क्या है? भरोसा कहां है? अपनी ही हिम्मत के सहारे हैं,  उसी हिम्मत के बेचारे हैं! लाखों है दुनिया में ऐसे,  जो जंग के मारे हैं! जंग क्यों वही सारी जंग है, सोच जिनकी तंग है,  इंसान होना रंग है? भेद के सब भाव हैं,  झूठे सारे ताव हैं,  सदिओं के ये घाव हैं! संस्कॄति के दाव हैं,  नैतिकता - चारों खाने चित्त! ज़िंदगी जंग आवाजें इकट्ठी होती हैं,  जय भीम! हक की,  कुचले हुए सच,  जुल्म की लाखों परतें,  चीरते,  जमीं होते हैं! सीखते, आवाज़ उठा,  कंधे से कंधा मिलाते! जंग के हथियार खबरें बतानें को नहीं,  बनाने के लिए हैं,  जताने के लिए हैं,  बरगला कर झूठ से भीड़ जुटाने के लिए हैं, सच से ध्यान  बंटाने के लिए हैं! जंग के प्रपंच! एकता कमाल है,  अनेकता बदहाल है सब को एक साँचे में ढलना है,  भेड़ बन के चलना है  "मैं" "मैं" "मैं"  सब को लगता है "मेरी" आवाज़ है  हंसी-खुशी मन की बात मान रहे हैं  जो छ्न के आया  उसी को छान रहे हैं! आप नया क्या जान रहे हैं?

बनते बिगड़ते

आग के समंदर है बाहर हैं अंदर हैं, अपने ही सच के राख हुए जाते हैं! नज़दीक से देखी खुद की खुदगर्ज़ी, अपने ही आइनों के ख़ाक हुए जाते हैं! मौत के सामने अंजाम की परवा करें? चलो आज सब बेबाक हुए जाते हैं! ऊंच-नीच, कम-ज्यादा, बड़ा ओ बेहतर, अपनी लकीरों के सब चाक हुए जाते हैं! फेसबुक, इंस्टा, ट्विटर पर सारे नुस्खे, हकीम सारे फ़कत अल्फ़ाज़ हुए जाते हैं! अपनी ही सरकार की सब बदसलूकी है, अब तो कहिए नासाज़ हुए जाते हैं? हाँ तो हाँ, न तो न, यही रट लगी है, किसकी कमजोरी के ताज हुए जाते हैं? सवाल पूछना गद्दारी का सबब है, गुनाह सरकार के राज हुए जाते हैं! सारी कमियों की तोहमत तारीख़ पर, कितने कमज़ोर हम आज हुए जाते हैं? परेशां नहीं करती आज की सच्चाईयाँ? आप क्यों इतने नज़रअंदाज़ हुए जाते हैं?  बरबाद हो रहे हैं कितने नेक इरादे कातिल उनके आबाद हुए जाते हैं?

हमारी सरकार - एक आत्मकथा!

हाथ पांव में दम नहीं हम किसी से कम नहीं बॉर्डर पर कुछ उठापटक हमको उसका गम नहीं, मर गए मासूम जवान, घड़ियाली आंसूं हमरे भी सच में आंखें नम नहीं? हम पहले ही बोले थे आज लड़ने का मन नहीं! बोलने में हम सबसे आगे, करने धरने का दम नहीं, धर्म के नाम के धंधे सब उसमें कोई सरम नहीं, फल की चिंता हम न करते, इसलिए कोई करम नहीं, काम चल जाएगा झूठ से, इसमें हमको भरम नहीं! ताक़त ही सर्वेसर्वा है, दिल के हम नरम नहीं! पत्रकार सब पालतू पिट्ठु सो कब्ज़ा सच पर कम नहीं! बहका दे सब पब्लिक को, इस बारे कोई वहम नहीं, विरोध को ही खरीद लेते, पूछो, किसकी ज़ेब गरम नहीं? मजबूर की क्या मदद करना, अबे! हमको काम कम नहीं? काल मरे से आज मर, आज मरे सो अभी! हाथ पे हाथ धर मंत्रीगण, चमड़ी मोटी कम नहीं! वादे झूठे थे सब के सब हमारा निठ्ठलापन नहीं,  आप मान कर सच बैठे,  मूरख आप कोई कम नहीं!