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जुलाई, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सत्य(।) वचन !

साथ आते हैं , हम , हमारे रास्ते भी मिलते हैं , साथ चलना है , उम्मीदों को भी , आकांक्षाएं भी हैं , और संगी - साथी होने की आशायें भी , नयी पहचान होगी इस साथ से , रास्ते तय होंगे आपस की बात से , फ़िर भी मैं , मैं और तुम तुम होगे , कहीं कहीं दीवारें होंगी रस्ते बनायेंगे , साथ चलेंगे , एक - दूसरे के रस्ते नहीं आयेंगे , मैं अपनी खामिंयों से पुरा हूँ , तुम अपनी कमियों से परिपक्व , अपने साथ आने के ये उसूल है , शुक्रिया नेक इरादों की दुआ रिश्ता कुबूल है !

फ़रेब दिल के!

आईने झूठे हैं या हम मुस्कराते हैं , दिल को कैसे कैसे फ़रेब आते हैं , युँ ही याद कर लेते हैं आपको , यूँ ही आपके करीब आते हैं , मुश्किल नहीं होती आपके जाने की , हम नहीं रोज़ नसीब आज़माते हैं , खामोश आहटें साथ चलती हैं , नहीं दुरियों का शोक मनाते हैं आपकी मोहब्बत के गरीब नहीं ,  फ़कीरी के वो अंदाज़ आते हैं ! न हों तो हर लम्हा बदल जाता है कहां हमको ज़ुदा हिसाब आते हैं ऐसे कोई अकेले कम नहीं पड़ते , पास आये तो दुरियाँ गिनाते हैं बिस्तर को अकेले कम नहीं पड़ते दो हों तो क्यों फ़ासंले गिनाते हैं ? दिल को कैसे कैसे फ़रेब आते है , सपनों में भी हमको आज़माते है

मोहब्बत के गुनाह!

हमको भी मुहब्बत के गुनाह आते है , आप कत्ल करिये हम गिनाते है करते है दो कपड़ों को घड़ी , दो लम्हों को भूल जाते हैं तमाम इरादे और चंद वादे , कमबख्त हालात बदल जाते हैं , उम्र हो गयी साथ चलते चलते हम आज भी आगे छूट जाते हैं ! हम को सफ़ाई देने से फ़ुर्सत नहीं आप सफ़ाई की याद दिलाते है बड़ा शौक है हमको दुनिया का , और आप मेरी खरोंचे दिखाते है खुद की गिनती को भूल जाते है आपकी आदतों में हम भी आते हैं , कहने को हज़ार बातें है लिखते कहे कहो तो साँप सुंघ जाते हैं ! हमको भी मुहब्बत के गुनाह आते है कैद कीजे फ़िर वही पनाह आते हैं

नापाक मोहब्बत

ढाई आखर रट - रट के सबको दिये बताये , लिये एसिड़ घुमत है चेहरा कोई मिल जाये! लगे लूटने इज्जत इतनी कम पड़ती है , मर्दों की दुनिया की ये कैसी गिनती है ? कम कपड़े थे , इज्जत कम थी फ़िर भी लुटे बड़े भिखारी मर्द , प्राण कब इनसे छूटे? हाय सबल पुरुष तेरा इतना ही किस्सा , आँखों में है हवस और हाथों में हिंसा? हाय अबला नारी तेरी यही कहानी , फ़िल्मों में पैसा वसूल है तेरी जवानी! घर में ही आईटम बन के रहना , बाहर भुगतना है मर्दों की नादानी ! लातों के भूत बातों से नहीं मानते , परिभाषा है मर्द की , जो नहीं जानते! नहीं चलती कहीं तो औरत का शिकार है ,  मर्द होना बड़ा फ़ायदे का व्यापार है! कमज़ोरी मर्द की औरत के गले फ़ंदा है, आदमी कौन सी सदी का भुखा नंगा है !

खाक मोहब्बत!

मुहब्बत है या मिल्कियत , साथ है या सौगात , कोई सामान है खरीदा जो रहे आपके हाथ ? रहे आपके हाथ बस , बात उतनी ही कीजे , लगे सुनाने चार , जो मुरख को मौका दीजे ! जो मूरख बोले बात वो गांठ के लीजे , कल के मुर्दे गाड़, आज ठाट कर लीजे बड़े ठाट से घुमे , झुमे चार चौबारे , थे वारे न्यारे सच, जो अब कड़वे सारे कड़वे पड़ गये सच तो जरा चाट के लीज़े , है काम की चीज़ बड़ी , जरा बाँट कि लीजे ! लगे बाँटने चोट ये इश्क में कैसी फ़ितरत , प्यार कहे थे कभी , अभी ये कैसी नफ़रत नफ़रत नहीं इलाज़ जख्म को मलहम कीजे , लंबा है सफ़र वज़न ज़रा हल्का कर लीजे , 

प्यारे सवाल!

मुसाफ़िर अपने सफ़र पे निकल जाते हैं ,   काहे पुराना नाम - सामान लिये जाते हैं।। रास्ते जिंदगी के कभी खत्म नहीं होते , जो प्यार करते हैं उऩ्हें जख्म नहीं होते !! सब अपने रस्ते हैं मर्ज़ी के मोड़ गये , आप खामख़ां सोचते हैं छोड़ गये ! टुटे हुए वादों को क्यों संभाल रखते हैं ,  भूल गये शायद के नेक इरादे रखते हैं ! जब तक रास्ता एक है हमसफ़र है , पर अकेले है तो क्या कम सफ़र है ? मोहब्बत एक तरफ़ा रही तो क्यों परेशान है , चार दिन की लाईफ़ है , और सब मेहमान हैं ! मोहब्ब्त के बड़े सीधे - सच्चे कायदे हैं , दुकान खोल लीज़े जो नज़र में फ़ायदे हैं ! वक्त बदला , ईरादे बदले , अब आगे बड़े हैं , एक जगह आप अड़े हैं तो चिकने घड़े हैं , ये फ़रीब - ए - नज़र है या अना का असर है , आप ही वजह हैं और आप ही कसर हैं ! (टुटे दिलों और फ़रेबी मुश्किलों की देवदासिय आदतों की दास्तानों से उपजी)

सोच की गड़बड़ या फ़क्त बड़बड़!

होर्न का तेवर मिनस्टर का फ़ेवर , ड़ॉवरी का वर , जिंदगी आपकी क्यों दूसरे ड्राईवर ' मर्द ' नाम है जात है नर , सत्यानाश दुनिया , जा मर ! कम उम्र में निकलते बच्चों के पर , जल्दी सीख गये गुटर - गूँ कबूतर , हाथ में मोबाईल पर कंधे पे सर ? क्या अपनी चाल पे है शीला आंटी का असर ? कहते हैं अपनी मर्ज़ी है , पर खबर नहीं कौन दर्ज़ी है , ज़ेब खर्च है और महंगाई अर्ज़ी है , किसको दोष दें सच्चाई फ़र्ज़ी है , घुटने में सर ड़ाल के पड़ो , ज़िंदगी जंग है , अपनों से लड़ो ? अभी बच्चे हो जरा बड़ो , रिश्ते खून होते हैं , दोस्त जुनून , सोचो मुसीबत में कौन सुकून , हमारे हाथ में नहीं कुछ , जो मरज़ी हुकूम ! दोस्ती छुप - छुप के करेंगे , जो हाथ आया उस पे मरेंगे , दोस्ती सौगात होती है , पर रिश्ता बने तो उसकी जात होती है , इज़्ज़त सिर्फ़ ताकत की लात होती है , वरिष्ठ , बुज़ूर्ग , बड़े सब चिकने घड़े , मान्यताओं मे अटके , परंपराओं में गड़े , छोटों की सच्चाई बेमानी है , हमने भी प्यार किया था . . . तेरी - मेरी माँ की . . ....

सचपन!

सचपन! 8-10 साल की उमर , और मज़बूत कमर ,  एक और को संभालने को , खेलने की उमर है , बचपन नाम है , चंचलता पहचान है , हरकतें है वैसी ही , और बड़ी जान है , तैयार फ़िर भी , हमेशा , अपनी नज़र और  अपनी कमर से , कब रो दे ,  माँ रोटी करती है , भूख लगी है ,  माँ पानी भरती है , गिर गया ,  माँ मज़दूरी पे है , आप ही बताईये ,  क्या कहें ? बचपन है? पर ये कह कर दूर खड़े होना , बचकाना होगा , बदनाम , बचपना होगा , इसलिये कमर कसते हैं , हंसते हैं , यही हमारा सच है , गुम कहीं बचपन है , जो है बस यही सचपन है !! (सरकारी आँकड़े कहते हैं, बच्चे स्कूल जाते हैं, और सच, छह मुसहर बस्तियों में से लगभग सभी बच्चे स्कूल नहीं जाते!)

चार दिन बचपन!

हम भी बच्चे है ! हमारे भी नाम हैं , हम भी खेलते हैं , हाँ ! हमें चीज़ें नहीं लगती खेलने के लिये ! नहीं , नहीं , लगती तो हैं , लकड़ी का टुकडा , मिट्टी का ढेला , जमीन , दीवारें , कभी कभी हम भी कपड़े पहनते हैं , कभी मट्टी से भी काम चला लेते हैं , काम , अपने से छोटे को गोदी उठाना , अब खेल लो , या झेल लो , सच्चाई , जो साथ होती है , साथी नहीं , हम हर रोज़ सीखते हैं , अनुभव से , अभाव से , और अपने पर न होते किसी भी यकीन के प्रभाव से क्लास में पीछे की जगह से , क्यों हमें ही साफ़ करना पड़ता है , शौचालय , उसकी वज़ह से , स्कूल में मास्टर छड़ी से , पर आप क्यों परेशान होते हैं , हम इंसान नहीं हैं , हम एक जात है , मुसहर , मेहतर , ड़ोम , हम गिनती में नहीं आते , फ़िर भी अगर आप जानना चाहते हैं , तो जल्दी करिये , हमारा बचपन छोटा रहता है , और हमारी गोद जल्दी भरती है , आने वाले अगले बचपन से बचपन , और बड़े होने के बीच के मंज़ुर और मज़बूर अपने सचपन से ! (पटना कि धनरुआ ब्लॉक में लालसाचक क्लस्टर में मुस...