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भगवा जहर!

एक वो जहर जो मार देता है,
एक वो जो विचार देता है,
नफ़रत हमें तैयार देता है,
सफ़ेद झूठ जो सच बन के ऐंठते हैं
जो गेहरे पैंठते हैं,
दिलो-यकीं में जाके बैठते हैं,
दो अलग अलग दो को चार करता है,
नमक मिर्च मसाला ड़ाल
अचार करता है!
लड़की मुस्लिम थी,
लड़के पाकिस्तान,
.के. 47,
अब आप अपना अपना सच बना लीजिये,
अरे हां, वो जो बचपन से सुने हैं
माँ-बाप, चचा से, वो भगवा सच
अब जवान हो गये हैं, नमक, मिर्च, मसाला
मुस्लिम से कभी शादी मत करना . . . ” जय सिया राम,
जनसंख्या बड़ाने के लिये बच्चे करते हैं . . .", कृष्ण हरि हरि,
पाकिस्तान को ज्यादा प्यार करते हैं. . . " शिव शिव
पानी मत पीना थूक कर देते हैं. . . ” जय हनुमान,
अब कहती रहे माँ माथा पीट-पीट के,
मेरी बच्ची मासूम थी, पुलिस कह रही है,
कानून बोलता है,
पर भगवा आँखों पर पड़ा है पर्दा
सच पे तमाम गर्दा पड़ा है, कौन ज़हमत करे
अब हमने उसे आतंकी मान लिया है,
"और वैसे भी वो मुसलमान थी,
तो ये कोई आश्चर्य की बात नही
ये लोग होते ही ऐसे हैं
अच्छा चलिये! मान लेते है
लड़की ने कुछ नहीं किया होगा,
(जाहिर है, अबला नारी थी)
पर फ़िर उसे ऐसे लोगों के साथ नहीं रहना था न. . .
च्च च्च च्च!
यानी थी तो उनके साथ न,
अब गैहूँ के साथ घुन. . .
सुन रहे है आप , आपके दिमाग में,
बज रही है भगवा धुन,
सोच का घुन,
स्लो पोइज़न,
जहर जो असर नहीं करता,
कसर करता है,
आपके अंधे सचों का जायका,
पर आँखे पूरी खोल कर देखिये
आपके भगवा भगौड़े सच
एक पुरी कौम को नोच रहे हैं,
तिल तिल, दिन दिन,
और फ़िर ये मासुम सवाल,
ये लोग ऐसा करते ही क्यों हैं?
ड़स आप रहे हैं,
और आपके हाथ में ही औज़ार है,
जहर तलाशने के,
जाहिर है,
कहाँ आप को जहर नज़र आयेगा?
खुद को चखियेगा नही?
भगवा कही के!

(जब मैंने पहली बार इस वाक्ये के बारे में सुना था, तो उतना ध्यान नहीं दिया था, सोचा गुज़रात दंगों के शिकार लोगों का ये दौर तो चलेगा ही, काफ़ी दुख भी हुआ था, पर जितनी ज्यादा बात इस केस के बारे में खुल कर सामने आ रही हैं मैं और हैरत, दुखी और गुस्से में आता जा रहा हूँ। मैं मोदी का कभी भी फ़ैन नहीं रहा, पर मुझे इस बात की परेशानी होती है कि कैसे तमाम पुलिस अफ़सर बस उनके गुंड़े बन गये हैं, ये अगर एक माफ़िया नहीं‌है तो क्या है?
मेरी परेशानी और दुख इस बात का है, कि कैसे हममें से ज्यादातर हिंदू घरों में पैदा हुए लोग बचपन से ऐसे तैयार किये जाते हैं कि कोई भी मुस्लिम कि तरफ़ उंगली उठती है तो हमारि झूठी या युँ कहिए हमारी भगवा मान्यताएं हमें उनको दोषी मानने में जरा भी समय नहीं लगाती. पर अब जब सच सामने आ रहा है तब भी हमारे शक का इलाज़ नहीं‌ हो पा रहा।इस नज़रिये से देखें तो हम सब वो जहर ले कर जी रहे हैं जो एक पुरे तब्के की कड़वाहट का कारण बन गया है, क्या अचंभा है कि कभी कभी उनमें से कोई ये जहर हमें वापस कर देता है?)

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